
छप्पय छंद
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1-
मिले-रंग से रंग,
प्रेम-की बदली छायी।
खिले-फूल से अंग,
बसंती-होली आयी।।
प्रभुपग रंग-गुलाल,
सखों-की टोली लायी।
भरकर सुखद-उमंग,
फाग-हम सबने गायी।।
भीग-रहे हैं लोग सब।
रंगों-की बरसात में।।
बरस-रहा है प्रेमरस।
मित्रों की हर-बात में।।
2-
लेकर-प्रभुपग रंग,
खेलने-होली आया।
त्याग-विषैली भंग,
प्रेम-का प्याला लाया।
लड़कर-प्रेमिल जंग,
प्रीति-रस सबने पाया।।
छोड़-मदों का संग,
प्रेम-रस सबको भाया।।
राग-द्वेष से मुक्त हो।
भांग-प्रेम की पीजिये।
सुरा-मोह की छोड़ के।
भक्ति-पान कर लीजिये।।
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प्रभुपग धूल