काव्यामृत

चंचरीक/चंचरी/ हरिप्रिया/चर्चरी छंद

नारी-का देख हाल,सूख-रही धैर्य डाल, मारो-रावण विशाल,माता कंकाली

चंचरीक/चंचरी/
हरिप्रिया/चर्चरी छंद
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नारी-का देख हाल,सूख-रही धैर्य डाल,
मारो-रावण विशाल,माता कंकाली।
होकर-क्रोधित अपार,हाथों में तेग-धार,
वेग हरो भूमि-भार,मात सिंह-वाली।।
सीता-का हरण देख,वक्ष-मध्य धसी मेख,
शीघ्र-खींच धर्म रेख,माँ भोली-भाली।
लूट-रहे दैत्य लाज,बिगड़ा है बड़ा काज,
रथ-पर जननी विराज,काट-पाप डाली।।
2-
दानव-बनकर दबंग,नोच रहे अंग-अंग,
करते हैं बहुत तंग,व्याकुल है नारी।
करके-करुणा अनंत,करो-मात दैत्य अंत,
कहते हैं सभी संत,जागो दुखहारी।।
तुम-ही हो माँ बसंत,तुम-ही हो दयावंत,
तुम्हीं-मात एक दंत,माता-सुखकारी।
तुम-ही हो धर्म-कंद,तुम-ही हो रवि-अमंद,
तुम्ही शक्ति-वेद-छंद,तुम्हीं-सृष्टि सारी।।
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प्रभुपग धूल

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