काव्यामृत

चंचरीक/चंचरी/ हरिप्रिया/चर्चरी छंद

कंचन-काया महान,माया-अरु मोह-ज्ञान, शिष्य-नहीं सत्य-मान,कहते त्रिपुरारी

चंचरीक/चंचरी/
हरिप्रिया/चर्चरी छंद
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*विधान* :– यह चार चरणों का सममात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक चरण में  46 मात्राएं होती है । दो दो या चारों चरण सम तुकांत हो। प्रति चरण 7 षटकल हो तथा आंतरिक समांत हो। चरणांत में 22 आवश्यक हैं।
*यति*– इसके 12,12,12,10 मात्राओं पर यति होता है ।
*विशेष* —
12= 3333 या 4233 या 444(121)
10= 334 या 442
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1-
कंचन-काया महान,माया-अरु मोह-ज्ञान,
शिष्य-नहीं सत्य-मान,कहते त्रिपुरारी।
सच्चा है संत-ज्ञान,कहते करुणा-निधान,
उच्च-मान ज्ञान-दान,सत्य-सत्य धारी।।
दुख-का उपवन विशाल,काटेंगे महाकाल,
पकड़-पकड़ सत्य-डाल,सुनलो नर-नारी।
छोड़ो-छलिया कुसंग,सुंदर है धर्म-रंग,
चले-सदा संग-संग,कहे-शम्भु प्यारी।।
2-
कंचन-काया सँभाल,पहिंनो प्रिय-भक्ति माल,
हरित-रहे धर्म-डाल,कहते बनवारी।
गीता का सत्य-ज्ञान,सुनियेगा भक्त-आन,
झूठ-नहीं-इसे जान,कहते गिरिधारी।।
चढ़कर जाता विमान,बनकर के तेजवान,
करे-नित्य-ईश-गान,कहते नर-नारी।
जग-में भटकें असंत,पाते हैं संत-अंत,
कहें-सत्य रमा-कंत,सुनो राम-प्यारी।।
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प्रभुपग धूल

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