
दोहा-
छंदाधारित मुक्तक
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1-
स्वर्ण-पंख गुरु-ने दिये,
छुआ-चाँद को आज।
ब्रम्हा-ज्ञान गुरु-से मिला,
जान-गया गुरु-राज।।
घूमा-तीनों लोक में,
फैलाकर निज-पंख।
गुरुवर ही निज-शिष्य का,
सिद्ध-करें हर-काज।।
2-
सकल-सृष्टि से श्रेष्ठ है,
परमेश्वर-का धाम।
ब्रह्म-लोक से उच्च है,
अपने गुरु-का नाम।।
दया-सिंधु गुरु आपके,
मुख-में रहते वेद।
नमन-करूँ गुरु-देव को,
नित्य-सुबह अरु शाम।।
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प्रभुपग धूल